श्री गुरु ग्रंथ साहिब जी
30 अगस्त 1604 ही के दिन Sri Guru Granth Sahib दा पहली बार प्रकाश स्वर्ण मंदिर गुरुद्वारा श्री अमृतसर सहिब में पांचवें गुरु श्री अर्जुन देव जी द्वारा किया गया था।
श्री गुरु अर्जन देव जी बोलते गये एवं भाई गुरदास पंजाबी भाषा में लिखते गये।
जो 1604 में संपन्न हुआ। नाम दिया आदि ग्रंथ।
श्रीगुरू ग्रंथ साहिब जी को 30 अगस्त 1604 को गुरुद्वारा श्री हरिमंदिर साहिब अमृतसर में पहला प्रकाश हुआ था।
1705 में गुरुद्वारा श्री दमदमा साहिब में दसवें गुरु श्री गुरू गोविंद सिंह जी ने अपने पिता नौवें गुरु (हिंदुओं के प्रथम गुरु) श्री गुरू तेग बहादुर जी के 116 शब्द जोड़ कर गुरू ग्रंथ साहिब जी को पूर्ण किया किया था।

श्री गुरु ग्रंथ साहिब जी का परिचय
Sri Guru Granth Sahib सिक्खों के 11 वें गुरू हैं।
जिनको दसवें गुरु श्री गुरु गोविंद सिंह जी ने अनन्त काल तक गुरुगद्दी पर विराजमान किया था।
आदेश जारी किया था-
सब सिखन को हुकम है गुरु मान्यो ग्रंथ।
गुरू ग्रंथ साहिब जी में कुल 1430 पृष्ठ हैं।
Sri Guru Granth Sahib में सिर्फ़ सिख गुरुओं के ही उपदेश नहीं है।
बल्कि अन्य हिन्दू संत और अलग धर्म के मुस्लिम भक्तों की वाणी भी सम्मिलित है।
जहाँ सारे संसार में धर्म जाति के नाम पर लोग मर रहें हैं। वहीं श्री गुरु ग्रंथ साहिब में कबीर, रविदास, नामदेव, सैण जी, सघना जी, छीवाजी, धन्ना एवं पांचों समय नमाज़ पढ़ने वाले शेख फ़रीद की वाणी भी दर्ज है।
अपनी भाषा अभिव्यक्ति, दार्शनिकता, संदेश की दृष्टि से श्रीगुरु ग्रन्थ साहिब जी अद्वितीय हैं।
इनकी भाषा की सरलता, सुबोधता एवं सटीकता जहां जनमानस को आकर्षित करती है।
वहीं संगीत के सुरों व 31 रागों के प्रयोग ने आत्मविषयक गूढ़ आध्यात्मिक उपदेशों को भी मधुर व सारग्राही बना दिया है।
गुरु वाणी के अनुसार हमें भगवान की ख़ोज के लिए जंगलों में भटकने की जरूरत नहीं है।
उस परमात्मा को अपने अन्दर खोजने की आवश्यकता है।

श्री गुरु ग्रंथ साहिब जी के विचार- (Sri Guru Granth Sahib)
श्री गुरु ग्रंथ साहिब जी में एकु पिता एकसु के हम बारिक…. पृष्ठ 611 एवं अवलि अलह नूरु उपाइआ कुदरति के सभ बंदे…..पृष्ठ 1349 में सभी मनुष्यों को एक ही ईश्वर की संतान मानते हुए समान माना गया है।
सो किउ मंदा आखिअै जितु जंमहि राजानु… पृष्ठ 473 में स्त्री के सम्मान की रक्षा के लिये एवं स्त्रियों को पुरुषों के समान दर्जा दिया गया है।
हक पराइआ नानका उसु सूअर उसु गाई… पृष्ठ 141 में शोषण का विरोध किया गया है।
जे रतु लागै कपड़ै जामा होइ पलीतु।। जो रतु पीवहि माणसा तिन किउ निरमल चीतु।। पृष्ठ 141
जब खून लगने से कपड़ा गन्दा हो सकता है तो खून चूसने वाले का मन निर्मल कैसे हो सकता है।
आदि गुरू श्री गुरु ग्रंथ साहिब जी