केदार नाथ मंदिर की स्थापना कब हुई और किसने कराई ?
Kedarnath Temple मान्यता है कि केदार नाथ मंदिर का निर्माण सर्व प्रथम पांडवों ने करवाया था।
उसके बाद इस मंदिर का जीर्णोद्धार अभिमन्यु के पौत्र जनमेजय ने करवाया था।
महाभारत काल से ही Kedarnath Temple अस्तित्व में है।
हिमालय की केदार नाम की चोटी पर स्थित यह मंदिर बारह ज्योतिर्लिंगों में से एक है।
यह मंदिर तीन तरफ पहाड़ों से घिरा हुआ है।
एक ओर करीब 22 हजार फिट केदार एवं दूसरी ओर 21 हजार 600 फिट ऊंचा खर्चकुंड है।
तीसरी ओर 22 हजार 700 फिट ऊंचा भरतकुंड है।
इस मंदिर के पास ही पांच नदियों का संगम भी है।
जिनके नाम- मंदाकिनी, मधुगंगा, क्षीरगंगा, सरस्वती एवं स्वर्णगौरी हैं।
जिनमे से कुछ नदियां समय के साथ लुप्त हो गईं।
लेकिन मंदाकिनी नदी आज भी इस स्थान पर प्रवाहित होती है।
मंदाकिनी के किनारे पर ही केदारेश्वर ज्योतिर्लिंग स्थित हैं।
यहां सर्दियों में भारी बर्फ एवं बारिश में अत्यधिक जल भराव रहता है।

Kedarnath Temple का पुनर्निर्माण आदि गुरु शंकराचार्य ने करवाया था।
मान्यता है कि इस मंदिर का पुनर्निर्माण आदि गुरु शंकराचार्य जी ने करवाया था।
कहते हैं कि शंकराचार्य जी ने इस मंदिर का पुनर्निर्माण 8 शताब्दी में करवाया था।
यह मंदिर 400 वर्षों तक बर्फ में दबा रहा था।
उसके बाद 8 शताब्दी में आदि शंकरचार्य जी के प्रयास से अस्तित्व में आया था।
इतिहसकारों के मतनुसार
इतिहासकार राहुल सांकृत्यायन के अनुसार यह मंदिर 12-13 वीं शताब्दी में अस्तित्व में आया।
इतिहासकार डॉ. शिव प्रसाद डबराल के अनुसार शैव संप्रदाय के लोग केदार नाथ मंदिर जाते थे।
यह संप्रदाय आदि गुरु शंकराचार्य जी से पहले भारत में रहता था।
उस समय यह केदार नाथ मंदिर विख्यात था।
कुछ इतिहास कारों के अनुसार Kedarnath Temple पर 1 हजार वर्षों से तीर्थयात्री जातें हैं।

केदार नाथ मंदिर के कपाट खुलने का समय
दिवाली दूसरे ही दिन शीत ऋतु में मंदिर के द्वार को बंद कर दिया जाता है।
6 महीने बाद मई के महीने में इस धाम के द्वार खोले जाते हैं।
उसके बाद ही इस ज्योतिर्लिंग की यात्रा आरम्भ होती है।
स्थानीय लोगों का एवं मंदिर के पुजारियों का कहना है।
6 महीने तक द्वार बन्द होने के बाद भी दीपक जलता रहता है।
भगवान के विग्रह एवं दंडी को 6 महीने तक पहाड़ के नीचे ऊखीमठ में ले जाते हैं।

केदार नाथ में बाढ़
16 जून 2013 की शाम को Kedarnath Temple में अचानक से बाढ़ गई थी। देखते ही देखते सब कुछ जलमग्न हो गया था।
कुछ समझ में नहीं आ रहा था क्या करें कैसे बचें?
उसके बाद भी इस मंदिर का कुछ नहीं बिगड़ा था। आस पास के सब घर, बिल्डिंग, सड़कें एवं वाहन तिनके की तरह बह गए थे।
इसे चमत्कार कहें या भगवान की कोई लीला जो मनुष्यों को समझ नही आई।
या फिर मंदिर बनाने वाले उस समय के इंजीनिर का यह अनोखी रचना।
जिसका इतनी भयावह बाढ़ भी कुछ ना बिगाड़ सकी।
उसके बाद 2014 में नरेंद्र मोदी जी के प्रधानमंत्री बनने के बाद।
एक बार फिर इस मंदिर का निर्माण कार्य शुरू हुआ।
नरेंद्र मोदी जी ने 100 वर्षों तक मंदिर अपने अस्तित्व के साथ खड़ा रहे।
ऐसी परिकल्पना के हिसाब से इस मंदिर के डेवलपमेंट का प्लान बनाया है।
यह उत्तराखंड का सबसे बड़ा एवं विशाल शिव मंदिर है।
यह कटवां पत्थरों के विशाल शिलाखंडों को जोड़कर बनाया गया है।