KANWAR में गंगाजल का क्या महत्व है।
KANWAR श्रावण मास में लाने का प्रचलन सदियों से है।
श्रावण माह के प्रत्येक सोमवार को घर के पास वाले शिवालय में कांवर में लाया हुआ गंगाजल से अभिषेक किया जाता है।
KANWAR क्यों लाते हैं क्या लाभ हैं कांवर के :-
KANWAR भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए लायी जाती है।
घर से भगवा वस्त्र धारण करके भोले (काँवरिया अर्थात जो KANWAR लेने जाते हैं) हरिद्वार जाते हैं।
बाँस के डंडे में दोनों ओर मटके में गंगाजल भर कर लाने का प्रावधान है।
आजकल आधुनिक युग मे सब कुछ डिजिटल हो गया है। रेडीमेड कांवर और प्लास्टिक की मटकी मिलजाती हैं।
गंगाजल से भरी KANWAR कांधे पर उठाकर अपने गांव में लाकर शिवलिंग पर चढ़ाते हैं।
इस प्रकार भगवान शिव को प्रसन्न कर मनवांछित फल प्राप्त करते हैं। KANWAR लाने का महीना वैसे तो श्रावण मास ही बताया गया है।
सभी राज्यों में श्रावण में ही KANWAR लाने का प्रचलन है किंतु पश्चिम उत्तर प्रदेश में फाल्गुन मास में KANWAR लाई जाती हैं।
शिवरात्रि से एक दिन पहले कांवरिये अपने अपने घर पहुंच जाते हैं।
शिवरात्रि के दिन शुभ मुहूर्त पर KANWAR का गंगाजल अपने परिवार के साथ शिवलिंग पर चढाते हैं।
बिल्वपत्र, मिष्ठान इत्यादि से पूजा करके भगवान शिव से मन शांत, तन निरोगी एवं धन संपदा वर भगवान शिव से मांगते हैं।

काँवर कितने प्रकार की होती है ?
Kanwar 4 प्रकार की होती है
1. साधारण कांवर इस कांवर को लोकभाषा में बैठी कांवर भी बोलते हैं।
इस काँवर को रास्ते कहीं पवित्र स्थान मंदिर अथवा वृक्षों पर भी रख देते हैं।
2. खड़ी काँवर इस कांवर को भूमि पर नही रखा जाता है एवं नाही किसी वाहन पर ला सकते हैं।
कांधे पर रख कर घर तक पैदल ही यात्रा करनी होती है।
मूत्र-दिनचर्या एवं आराम करने की स्तिथि में अपने साथी को काँवर दी जा सकती है।
3. डाककांवर यह काँवर एक निर्धारित समय सीमा में ही गन्तव्य तक पहुंचानी होती है।
उसकी समय सीमा 24, 36, 48, 72 घंटे दूरी का आकलन करके तय की जाती है।
बिना रुके गन्तव्य तक पहुँचाई जाती है।
4. दंडवत कांवर इस KANWAR में कांवरियां गंगाजल भर के दण्डवत करता हुआ अर्थात सड़क पर लेटकर अपनी यात्रा पूर्ण करता है।
यह KANWAR यात्रा बहुत कठिन होती है इस मे 1 महीना तक भी लग जाता है।

KANWAR के नियम
कांवरियों को नशा नहीं करना चाहिए।
झूठ नहीं बोलना चाहिए।
स्नान इत्यादि करके पवित्र रहना चाहिए।
सात्विक भोजन करना चाहिए।
यात्रा करते समय किसी को कष्ट भी नहीं पहुँचाना चाहिए।
KANWAR का प्रचल कब शुरू हुआ था
प्रथम कांवर कौन लाया था हालांकि इस बात में भी मतभेद हैं।
अलग अलग मतों के अनुसार 4 लोक कथाएं प्रचलित हैं।
1. कहतें हैं लंकापति रावण प्रथम KANWAR लेकर आया था और भगवान शिव की उपासना की थी वहीं से काँवर लाने का प्रचलन शुरू हुआ।
2. भगवान परशुराम ने गढ़मुक्तेश्वर में स्नान करके गंगाजल भरकर मयराष्ट्र (मेरठ) में बागपत के पास पूरेश्वर महादेव मंदिर में चढ़ाया था एवं पूजा की थी।
लोगों की मानें तो वहीं काँवर लाने की शुरूआत हुई थी। मेरठ का पौराणिक नाम मयराष्ट्र था।
3. मान्यता है कि जब श्रवण कुमार अपने माता पिता को कांधे पर बैठा कर तीर्थ यात्रा करा रहे थे। तब वह हरिद्वार भी गये थे वहीं से उनके माता पिता गंगाजल भर कर ले आये थे।
आगे चल कर किसी शिवालय में उन्होंने जलाभिषेक करके अपने पुत्र की लंबी आयु का वरदान महादेव से मांगा था। और वहीं से काँवर यात्रा प्रारम्भ हुई।
4. कहतें हैं भगवान राम ने सर्वप्रथम जहानुगिरी (सुल्तानगंज) से जल भरकर बाबनाथ धाम की परिकर्मा करके शिवलिंग पर जलाभिषेक किया था।
मान्यता है तभी से काँवर लाने की परम्परा शुरू हुई है।
सुल्तानगंज का पुराना नाम “जहानुगिरी” था जिसका वर्णन पंडो द्वारा संकप्ल्प कराने के वक्त पढ़े जाने वाले श्लोकों में भी किया जाता है।