देवी अहिल्या
देवताओं के राजा देवराज इंद्र को ऋग्वेद में सभी देवताओं से शक्तिशाली और प्रभावशाली बताया गया है।
इनका निवास स्थान स्वर्ग है जहां एक से एक सुंदर अप्सराएं हैं।
जो इन्द्र का मनोरंजन करती हैं। इसके बावजूद भी देवराज इन्द्र पृथ्वी पर एक स्त्री को देखकर मोहित हो गए।
जो गौतम ऋषि की पत्नी Devi Ahilya थीं।

गौतम ऋषि
एक दिन महर्षि गौतम ने Devi Ahilya से कहा कि उन्हें एक विशेष सिद्धि की प्राप्ति के लिए। एकांतवास में तपस्या करने जाना है।
अहिल्या ने उन्हें सहमति देते हुए उनकी प्रतीक्षा करने की बात कह विदा कर दिया।
इंद्र बस ऐसे ही एक अवसर की प्रतीक्षा ना जाने कब से कर रहा था।
इन्द्र की कामुक इच्छा
ऋषि के जाते ही वह महर्षि गौतम का वेश धारण कर अहिल्या के पास पहुंच गया।
पति को वापस देख जब अहिल्या चौंकीं तो उसने प्रेम जताते हुए कहा कि आपके सौंदर्य ने वन में जाने ही नहीं दिया इसीलिए तपस्या छोड़ कर वापिस आ गया।
गौतम बने इन्द्र ने अहिल्या से प्रेम निवेदन करना शुरु किया। इन्द्र के असली रुप को Devi Ahilya पहचान नहीं पायीं। पति समझकर इन्द्र के प्रेम निवेदन देवी अहिल्या ने स्वीकार कर लिया। इन्द्र की कामुक इच्छा पूरी हो गई तब वह कुटिया से निकलकर जाने लगा।
उसी समय गौतम ऋषि पहुंच गये ।
गौतम ऋषि ने इन्द्र को अपने ही वेश में अपनी कुटिया से निकलते देख जान लिया कि इन्द्र ने अहिल्या के साथ पाप कर्म किया है।
क्रोध से भरकर गौतम ऋषि ने इन्द्र से कहा पापी तूने मेरी पत्नी का स्त्रीत्व भंग किया है।
यदि तुझे स्त्री योनि को पाने की इतनी ही लालसा है तो मैं तुझे श्राप देता हूं कि अभी इसी समय तेरे पूरे शरीर पर हजार योनियां उत्पन्न हो जाएगी।
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श्राप -: कुछ ही पलों में श्राप का प्रभाव इन्द्र के शरीर पर पड़ने लगा और उनके पूरे शरीर पर स्त्री योनियां निकल आई।
ये देखकर इन्द्र आत्मग्लानिता से भर उठे। उन्होंने हाथ जोड़कर गौतम ऋषि से श्राप मुक्ति की प्रार्थना की।
ऋषि ने इन्द्र पर दया करते हुए हजार योनियों को हजार आंखों में बदल दिया।
क्रोधावेग में उन्होंने Devi Ahilya को पत्थर बन जाने का श्राप दे दिया।
उन्होंने ऋषि का श्राप स्वीकार करके अपना सारा जीवन पत्थर बनकर गुजार दिया।
जब भगवान अपने भाई और ब्रह्मर्षि विश्वामित्र के साथ वहाँ आये तब देवी अहिल्या का उद्धार हुआ।
पत्थर की देवी अहिल्या

लोक कथाओं के अनुसार देवी अहिल्या पत्थर की हो गईं थीं,
लेकिन मेरा मानना कुछ और है कोई स्त्री या पुरूष कैसे पत्थर का हो सकता है।
उस समय समाज एक बहुत अहमियत रखता था।
जब गौतम ऋषि अहिल्या को अपवित्र मानकर छोड़कर चले गए होंगे,
और गाँव वालों ने भी उनको अपवित्र मानकर उनके पास आना जाना बंद कर दिया होगा।
शायद इसी कारण उनको पत्थर का बोला होगा,
लोककथाओं में जो भी हो किन्तु दशरथ पुत्र राम ने उनके आश्रम में जाकर यह सिद्ध कर दिया कि नारी माता है।
तभी तो उनको भगवान राम की उपाधि दी गई है।