Brahmarshi Vishwamitra
Brahmarshi Vishwamitra को सब यही जानते हैं कि वह राम लक्ष्मण को राजा दशरथ से मांगकर ले गये थे।
और उनका उनसे तड़का राक्षसी का वध कराया तदोपरांत उनका विवाह सीता से करा दिया।
एक राजा से ब्रह्मर्षि बनने की यात्रा, गायत्री मंत्र एवं दूसरे स्वर्गलोक की रचना।
राजा कौशिक

राजा गाधि के पुत्र कौशिक (विश्वामित्र) बहुत बड़े राजा थे।
प्रजा उनसे प्रेम करती थी।
एक दिन वह अपनी सेना के साथ युद्ध करके वापिस लौट रहे थे।
उस रात्रि उन्होंने ब्रह्मर्षि वशिष्ठ जी के आश्रम में रुकने का निश्चय किया।
वशिष्ठ जी ने राजा कौशिक का बहुत आदर सत्कार किया एवं सेना को अत्यंत ही स्वादिष्ट भोजन कराये जो किसी चक्रवर्ती राजा को भी कराना सम्भव नहीं था।
जब कौशिक (विश्वामित्र) को ज्ञात हुआ है।
यह चमत्कार ऋषि वशिष्ठ के आश्रम में नंदनी नामक गाय का है।
जो इन्द्र उनको दी है।
राजा कौशिक (Brahmarshi Vishwamitra) ने उस गाय को लेने की इच्छा जताई किन्तु वशिष्ठ जी के मना करने पर सेना को आदेश दे दिया बलपूर्वक गाय को ले जाने का किन्तु ब्रह्मर्षि वशिष्ठ जी के आगे सेना ध्वस्त हो गई।
राजा कौशिक (Brahmarshi Vishwamitra) को हार का सामना करना पड़ा।
CHAUSATH YOGINI MANDIR-: Read
राजा कौशिक से विश्वामित्र
तब से राजा ने निश्चय कर लिया अब वह तप करेंगे।
एवं भगवान शिव को पसन्न कर उनसे दिव्य अस्त्र शस्त्र ग्रहण करेंगें।
ऐसा हुआ भी और भगवान शिव ने प्रसन्न होकर उनको विश्वामित्र नाम दिया।
विश्वामित्र ने अपने क्रोध को शांत करने के लिए फिर से ब्रह्मर्षि वशिष्ठ पर आक्रमण कर दिया।
किन्तु वशिष्ठ जी के सामने वह फिर टिक नहीं पाये।
विश्वामित्र एवं मेनका

ब्रह्मर्षि वशिष्ठ से दोबारा हार ने के बाद विश्वामित्र ने कठोर तप शुरू कर दिया।
उनके तप से डर कर इंद्र ने स्वर्ग की अप्सरा मेनका को भेजा तप भंग करने के लिए।
ऐसे में मेनका से विश्वामित्र ने विवाह कर लिया और मेनका से विश्वामित्र को एक सुन्दर कन्या प्राप्त हुई जिसका नाम शकुंतला रखा गया।
इसी पुत्री का आगे चलकर सम्राट दुष्यंत से विवाह हुआ।
पुरुवंश के राजा दुष्यंत और शकुंतला के पुत्र भरत के नाम पर हमारे देश का नाम भारत पड़ा।
राजा त्रिशंकु
राजा त्रिशंकु की इच्छा थी कि वे शरीर के साथ स्वर्ग जायें।
किन्तु यह स्वर्ग के नियम के विरुद्ध था।
तब विश्वमित्र ने त्रिशंकु को स्वर्ग में भेजा किन्तु इंद्र ने राजा को वापिस भेज दिया।
तब Brahmarshi Vishwamitra ने उनके लिए अलग ही स्वर्ग की रचना करदी।
ब्रह्मर्षि उपाधि
स्वयं ब्रह्मा जी ने विश्वामित्र को ब्रह्मऋषि की उपाधि दी थी किन्तु उनकी इच्छा अनुसार ब्रह्मा जी के कहने पर ब्रह्मर्षि वशिष्ठ जी विश्वामित्र को ब्रह्मर्षि विश्वामित्र की उपाधि दी।