वास्तु शास्त्र के देवता वास्तु
वास्तु सिर्फ शास्त्र या किसी विशेष धर्म के लिए नहीं है।
यह तो एक विज्ञान है हमारे पूर्वजों के द्वारा निर्धारित किया हुआ एक गूढ़ रहस्य।
वास्तु के देवता

उत्तर भारत में विश्वकर्मा एवं दक्षिण भारत में मायन ऋषि ने प्रचार प्रसार किया ।
जिसके नियम स्वयं ब्रह्मा जी ने निर्धारित किये हैं।
मत्स्य पुराण में विस्तार से वर्णन मिलता है।
वास्तु शास्त्र में दिशाओं का बहुत महत्व है-
1. पूर्व दिशा
इस दिशा के देवता इन्द्र देवता हैं।
इस दिशा में घर का मुख्य दरवाजा हो तो धन की कमी नही रहती है।
यहाँ बच्चों का कक्ष भी बनाया जाता है।
2. दक्षिण दिशा-
इस दिशा के देवता यमराज हैं।
यह खुश तो धन, संपदा, सुख एवं दीर्घायु होती है।
इस दिशा में सीढियां एवं बेडरूम भी बनाया जा सकता है।

3. पश्चिम दिशा
इस दिशा के देवता वरूण देव हैं। जिन्हें जलतत्व का स्वामी कहा जाता है।
इस दिशा में बेडरूम, टॉयलेट एवं सेप्टिक टैंक भी बनाएं जाते हैं
4. उत्तर दिशा-
इस दिशा के देवता धन कुबेर देव हैं।
जो धन के स्वामी हैं।
इस दिशा में घर का मुख्य दरवाजा हो तो ख्याति प्राप्त होती है।
यहाँ आप अधिक से अधिक खिड़कियाँ एव प्लांट लगाएं।
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5. उत्तर-पूर्व दिशा (ईशान कोण)-
इस दिशा के देवता सूर्य देव हैं।
इससे जागरूकता और बुद्धि तथा ज्ञान मामले प्रभावित होते हैं।
यहाँ पूजा घर एवं मुख्य द्वार बनायें जाते हैं।
6. दक्षिण-पूर्व दिशा ( आग्नेय कोण)-
इस दिशा के देवता अग्नि देव हैं।
यहाँ रसोई घर एवं भंडार कक्ष बनाना बहुत अच्छा होता है।

7. दक्षिण-पश्चिम दिशा ( नैऋत्य कोण)-
इस दिशा के देवता निरती हैं जिन्हे दैत्यों का स्वामी कहा जाता है।
इस दिशा में घर का मुख्य कक्ष (Master Bedroom) होना चाहिये एवं तिजोरी भी इसी दिशा में होनी चाहिये।
8. उत्तर-पश्चिम दिशा( वायव्य कोण)-
इस दिशा के देवता पवन देव हैं।
इस दिशा में मेहमान कक्ष एवं भोजन कक्ष बनाना चाहिए।
ब्रह्म स्थान-
एवं घर के बीच के स्थान को ब्रह्म स्थान कहते हैं।
घर के मध्य स्थान को खुला रखना चाहिए और यहाँ तुलसी का पौधा लगाना बहुत अच्छा होता है।
इसके देवता स्वयं ब्रह्मा जी हैं।