पारसी धर्म की शुरुआत ईरान से हुई थी।
माना जाता है कि इस पारसी धर्म की स्थापना आर्यों की ईरानी शाखा के एक प्रोफेट जरथुष्ट्र ने की थी।
इस धर्म को एकेश्वरवादी धर्म भी कहा जाता है।
क्योंकि इसे मानने वाले एक ईश्वर पर आस्था रखते हैं।
जिन्हें ‘आहुरा माज्दा’ के नाम से संबोधित किया जाता है।
पारसी धर्म के लोग अग्नि की पूजा करते हैं।
इनका मानना है कि अग्नि पवित्र और भगवान का रूप है।
पारसी भारत कब आये
ईरान में जब अरब साम्राज्य का आक्रमण हुआ तब पारसियों को या तो भागना पड़ा या इस्लाम कुबूल करना पड़ा ।
कुछ धर्म प्रेमी समुंद्री मार्ग से नाव में बैठ कर भारत आगये।
भारत के गुजरात राज्य में जब राजा जाड़ी राणा से शरण मांगी तो उन्होंने शरण देने से मना कर दिया ।
उनको पारसी नही आती थी और पारसी गुजराती नही समझते थे।
राजा ने दूध का भरा कटोरा उनके आगे रख कर पारसियों के सरदार को यह समझाने की कोशिश की कि हमारे पास शरण देने जगहा नहीं है।
तब पारसियों के सरदार ने दूध के कटोरे में चीनी डाल कर यह बताने का प्रयास किया कि जैसे दूध में शक्कर मिल गई वैसे ही हम आप मे मिल जायेंगे।
यह तर्क राजा को बहुत पसंद आया और उन्होंने शरण देदी। मंदिर स्थापना के लिए भूमि भी दी।
यहां उन्होंने सन् 721 ई. में प्रथम पारसी अग्नि मंदिर का निर्माण किया।
पारसी धर्म में अंतिम संस्कार
पारसी धर्म के लोगो का अंतिम संस्कार करने का तरीका बहुत अलग है।
यह शरीर को ना जलाते हैं और ना दफ़नाते हैं।
यह शव को एक ऊंचे स्थान पर रख देतें हैं चील और गिध्दों के भरोसे।
मुम्बई में यह स्थान टॉवर ऑफ साइलेंस गार्डन के नाम से जाना जाता है।
इनकी तेज़ी से घटती आबादी अब सरकार की भी चिंता बन गई है।
जहाँ एक ओर देश मे जनसंख्या नियंत्रण कानून लाने की मांग हो रही है वही पारसी लोगो की जनसंख्या बढ़ाने पर भी केंद्र सरकार काम कर रही है।
भारत में लगभग 57 हज़ार से अधिक पारसी धर्म के लोग रहते हैं।
जो दुनिया में सबसे अधिक जनसंख्या भारत मे ही है।
अगले लेख में बतायेंगे पारसी धर्म की शुरुआत कब और कहाँ हुई।